मौसम का हाल जानने, कीटों से निपटने और उपज बढ़ाने के लिए एआई (AI) का प्रयोग कर रहे भारत के गन्ना किसान
निम्बुत, महाराष्ट्र, भारत: ‘तैयार हो?’ यह कहते हुए सुरेश जगताप मुड़े और गन्ने के खेत में आगे बढ़ने लगे।
इन लंबे गन्नों के बीच हरियाली से भरी दुनिया दिख रही थी। 65 वर्षीय किसान जगताप पत्तियों की सरसराहट के बीच थोड़ी दूरी पर बने पतले से मेटल स्ट्रक्चर की ओर रास्ता बनाते बढ़ रहे थे।
उनका परिवार पीढ़ियों से खेती कर रहा है। पहले जगताप का परिवार सब्जियों और फलों की खेती करता था। कुछ समय पहले उनके परिवार ने गन्ने की खेती शुरू की थी। बीते वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने मौसम को ज्यादा अप्रत्याशित बना दिया है। इससे कीटों एवं बीमारियों का खतरा बढ़ा है।
इन परिस्थितियों को देखते हुए मदद के लिए हाल ही में जगताप ने एआई की ओर रुख किया। इसके लिए उन्होंने बारामती के एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट ट्रस्ट (एडीटी) के वैज्ञानिकों का सहयोग लिया और माइक्रोसॉफ्ट की एआई टेक्नोलॉजी का प्रयोग शुरू किया।
उनके खेत में दिख रहा मेटल स्ट्रक्चर एक वेदर स्टेशन है। इसके ऊपर हवा, बारिश, धूप, तापमान और नमी को मापने वाले उपकरण लगे हैं। नीचे सेंसर है, जो मिट्टी की नमी, पीएच और इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी के साथ-साथ उसमें पोटेशियम एवं नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्वों के स्तर का भी पता लगाता है। इसके डाटा का सेटेलाइट एवं ड्रोन से मिली तस्वीरों के साथ-साथ पुराने डाटा के साथ विश्लेषण किया जाता है। इस विश्लेषण के बाद एक मोबाइल एप के माध्यम से डेली अलर्ट जारी किया जाता है। इसमें सिंचाई करने, उर्वरक डालने, कीटनाशक छिड़कने जैसे अलर्ट दिए जाते हैं। सेटेलाइट मैप की मदद से यह भी सटीक तरीके से बताया जाता है कि अलर्ट में बताया गया कदम किस जगह पर उठाने की जरूरत है।
इसका उद्देश्य है कि सही समय पर सही कदम उठाया जाए, जिससे बदलती परिस्थितियों का सही तरह से सामना किया जा सके और सही नतीजा मिले। यह इनाम एक ऐसी उपज के रूप में मिलता है, जहां हर गन्ने में मिठास (सुक्रोज) अपने सर्वोच्च स्तर पर होती है।
छह महीने पहले अपने चार एकड़ के खेत में से टेस्ट प्लॉट के रूप में एक एकड़ में इस खेती को शुरू करने के बाद से जगताप और उनके परिवार के सदस्य एप से मिलने वाले सभी निर्देशों का सख्ती से पालन कर रहे हैं। फसल तो पूरी तरह से नवंबर, 2025 तक तैयार होगी, लेकिन अंतर उन्हें अभी से अनुभव हो रहा है।
जगताप कहते हैं, ‘फसल अच्छी तरह से बढ़ रही है। पत्तियां ज्यादा हरी हैं और गन्नों की लंबाई बहुत हद तक एकसमान है।’
‘आंखों देखी पर होता है भरोसा’
भारत दुनिया में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन इस उत्पादन का बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में जगताप जैसे छोटे किसानों से आता है। छोटे किसानों के मामले में सूखा, बाढ़, कीट और फसली बीमारियों जैसी समस्याएं पूरी की पूरी फसल को बर्बाद करने की क्षमता रखती हैं, जिससे किसान कर्ज में डूब जाते हैं और कई बार आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
एडीटी बारामती की स्थापना 1970 के दशक में हुई थी। इसका उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्र में खेती के आधुनिक तरीके अपनाते हुए किसानों की सहायता करना है। आज की तारीख में इसके पास बड़ी संख्या में लोग हैं, जिनकी किसानों तक पहुंच है और इसके शोधकर्ता दुनियाभर के संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसके कृषि वैज्ञानिकों ने स्थानीय किसानों का कई पद्धतियों से परिचय कराया है, जैसे ड्रिप सिंचाई, जिसमें पारंपरिक सिंचाई के तरीके की तुलना में बहुत कम पानी लगता है। इसके अलावा उन्होंने बिना मिट्टी की खेती, आधुनिक ग्राफ्टिंग पद्धति और दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए विदेशी बैलों के साथ देसी गायों के कृत्रिम गर्भाधान कराने जैसे तरीकों से भी किसानों को परिचित कराया है।
एडीटी बारामती से करीब 16 लाख स्थानीय किसान लाभान्वित हुए हैं। यह ट्रस्ट अपने 150 एकड़ के कैंपस में ‘कृषक’ के नाम से किसानों के लिए सालाना महोत्सव का भी आयोजन करता है, जिसमें नई तकनीकों के बारे में बताया जाता है। इसमें देशभर से 2,00,000 से ज्यादा किसान हिस्सा लेते हैं।
एडीटी बारामती के ट्रस्टी प्रताप पवार कहते हैं, ‘किसान आंखों देखी पर भरोसा करने की नीति पर चलते हैं।’
जनवरी, 2024 में किसान महोत्सव के दौरान एडीटी बारामती ने गन्ने से लेकर टमाटर एवं भिंडी तक करीब एक दर्जन फसलों के लिए अपना एआई प्रोजेक्ट पेश किया था, जिसमें एआई से मिली जानकारियों के आधार पर खेती की जाती है। इसे ‘भविष्य की खेती’ (फार्म ऑफ द फ्यूचर) नाम दिया गया है।
गन्ने के टेस्ट प्लॉट में बड़े और मोटे गन्ने उपजते हैं, जिनका वजन सामान्य की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत तक ज्यादा होता है और इनसे 20 प्रतिशत तक ज्यादा चीनी मिलती है। इस पद्धति में कम पानी एवं उर्वरकों की जरूरत पड़ती है और फसल का पूरा चक्र भी 18 महीने के बजाय घटकर 12 महीने रह जाता है।
इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. योगेश फटके ने कहा, “हम पानी से संबंधित डाटा, मौसम से जुड़े डाटा, पोषक तत्वों और मिट्टी के पीएच के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। हमें इसे लेकर बहुत शानदार प्रतिक्रिया मिली है।”
इसके लिए करीब 20,000 किसानों ने नाम दर्ज कराया है। पहले ट्रायल में गन्ने पर फोकस करते हुए इनमें से 1,000 किसानों को चुना गया है। इनमें से शुरुआती स्तर पर 200 किसानों ने 2024 के मध्य से खेती शुरू कर दी है।
गन्ने के टेस्ट प्लॉट में बड़े और मोटे गन्ने उपजते हैं, जिनका वजन सामान्य की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत तक ज्यादा होता है और इनसे 20 प्रतिशत तक ज्यादा चीनी मिलती है।
एआई से दूरी को कर रहे कम
यह टेक्नोलॉजी सेटेलाइट के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट के डाटा प्लेटफॉर्म एज्यूर डाटा मैनेजर फॉर एग्रीकल्चर (जिसे पहले फार्मबीट्स कहा जाता था) से मौसम, मिट्टी एवं अन्य डाटा जुटाती है। इसलिए किसान कुछ ही क्लिक में यह सटीक तरीके से यह देख पाते हैं कि उनके खेत में क्या हो रहा है।
फार्मबीट्स पर माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च का ओपन-सोर्स रिसर्च प्रोजेक्ट फार्मवाइब्स डॉट एआई फसल के पुराने डाटा के साथ नए डाटा का विश्लेषण करता है। इससे कई तरह की जानकारियां मिलती हैं, जैसे – फसल को पूरा पानी मिल रहा है या नहीं, खेत में कीट हैं या नहीं और अगर हैं तो कौन से कीट हैं और इनसे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है।
जनरेटिव एआई इसे एक कदम आगे ले जाता है। माइक्रोसॉफ्ट एज्यूर ओपनएआई सर्विस किसानों के लिए तकनीकी जानकारियों को साधारण भाषा में बदल देती है। उदाहरण के तौर पर, यह सेटेलाइट से मिले डाटा की मदद से किसानों को सटीक जगह के बारे में बताती है कि उन्हें कहां उर्वरक डालने की जरूरत है या किस तरह के कीट पनप रहे हैं। एक मोबाइल एप की मदद से यह सब जानकारी अंग्रेजी, हिंदी और स्थानीय मराठी भाषा में उपलब्ध कराई जाती है। इसमें किसानों को आसान भाषा में फसल की पूरी लाइफ साइकिल के लिए प्लान भी मिल जाता है, जिससे उन्हें यह पता होता है कि कब क्या करना है। इससे खेती में किसी तरह का अनुमान लगाने की जरूरत नहीं रह जाती है।
इस मोबाइल एप को एग्रीपायलट डॉट एआई नाम दिया गया है, जिसे माइक्रोसॉफ्ट पार्टनर क्लिक2क्लाउड ने एडीटी बारामती के लिए कस्टमाइज किया है।