कोपायलट की मदद से भारत के अध्यापक कम समय में बना ले रहे हैं पाठ की कार्ययोजना

A male teacher in a blue plaid shirt interacting with students in blue uniforms in a classroom

कनकपुरा, कर्नाटक, भारत: गांव में नारियल के पेड़ों से घिरे पांच कमरों वाले एक स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापक रविंद्र के. नागैया आज 7वीं कक्षा की विज्ञान की बेला में छात्रों को चौंकाने के लिए कुछ खास तैयारी करके आए थे।

आज का विषय था ‘एसिड, बेस एंड साल्ट’ यानी ‘अम्ल, क्षार एवं लवण’। सामान्य दिनों की तरह लिटमस स्ट्रिप, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और बेकिंग सोडा के साथ-साथ रविंद्र ने गुड़हल के फूलों और नींबू के रस से भी दो छोटे बीकर भरे हुए थे। सभी बच्चे मेज के आसपास जुट गए थे। रविंद्र के कहने पर एक बच्चे ने नींबू और गुड़हल के फूलों के रस को मिलाया। मिलाते ही घोल हरा हो गया, जो एसिडिटी का संकेत है। दूसरे छात्र ने बेकिंग सोडा और गुड़हल के रस को मिलाया तो वह गुलाबी हो गया। बच्चों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

आज से पहले बच्चे नहीं जानते थे कि गुड़हल के फूल का रस एक प्राकृतिक पीएच इंडीकेटर होता है।

रविंद्र को इस एक्टिविटी का विचार एआई डिजिटल असिस्टेंट शिक्षा कोपायलट से मिला था। यह डिजिटल असिस्टेंट मिनटों में एक्टिविटी, वीडियो और क्विज समेत किसी पाठ की पूरी कार्ययोजना (लेसन प्लान) बनाने में सक्षम है। सॉफ्टवेयर को गैर लाभकारी संस्थान शिक्षण फाउंडेशन की तरफ से विकसित किया जा रहा है। कर्नाटक के 30 स्कूलों में 30 अध्यापकों ने अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय कन्नड़ भाषा में इस सॉफ्टवेयर को परखा है और अध्यापकों का कहना है कि इसके नतीजे बहुत अच्छे हैं।

A male teacher fills out fields on his laptop screen

शिक्षा कोपायलट माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया के प्लेटफॉर्म प्रोजेक्ट वीईएलएलएम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य विशेष जनरेटिव एआई कोपायलट विकसित करना है, जो अध्यापकों से लेकर किसानों एवं छोटे कारोबारियों तक की पहुंच में आ सके।

शिक्षा एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है पढ़ाई। इसे माइक्रोसॉफ्ट एज्यूर ओपनएआई सर्विस पर बनाया गया है और स्कूल के पाठ्यक्रम एवं लर्निंग ऑब्जेक्टिव्स के साथ इसे जोड़ा गया है। एज्यूर कॉग्निटिव सर्विस का प्रयोग किताबों में लिखे टेक्स्ट को इसमें शामिल करने के लिए किया गया है। इसमें यह भी शामिल है कि किताब में कंटेंट को किस तरह से ऑर्गनाइज किया गया है।

शिक्षा कोपायलट के साथ शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भारत के अध्यापकों को थोड़ी राहत मिलेगी और बच्चे ज्यादा जीवंत और समृद्ध तरीके से पढ़ाई का आनंद ले सकेंगे।

अध्यापकों के दृष्टिकोण से देखें तो इसका सबसे बड़ा फायदा है पाठ की तैयारी में समय की बचत। रविंद्र पिछले 15 साल से वेंकटरायनाडोडी के सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय में विज्ञान एवं गणित पढ़ा रहे हैं। वह कहते हैं कि उन्हें कागज-कलम लेकर एक लेसन प्लानिंग में 40 मिनट तक का समय लग जाता था। अब मात्र 10 मिनट में पाठ की तैयारी हो सकती है।

पांच अध्यापकों और 69 छात्रों वाले इस स्कूल में सीमित संसाधन हैं। ज्यादातर बच्चों के अभिभावक आम या रेशम से अपनी आजीविका चलाते हैं। इसलिए रविंद्र अपनी जरूरत के हिसाब से लेसन प्लान में बदलाव भी कर लेते हैं। अगर किसी एक्टिविटी के लिए जरूरी मैटेरियल न हो, तो वह कोपायलट से किसी अन्य एक्टिविटी का सुझाव मांग लेते हैं। इसके लिए वह यह भी बता सकते हैं कि उनके पास क्या मैटेरियल आसानी से उपलब्ध हैं। अगर कोई वीडियो ज्यादा लंबा हो, तो वह छोटे वीडियो के लिए कह सकते हैं। वह असाइनमेंट एवं प्रश्नों में भी बदलाव कर सकते हैं। रविंद्र कहते हैं, ‘चॉक और ब्लैकबोर्ड का पुराना तरीका अब पर्याप्त नहीं रह गया है। शिक्षा की मदद से जो समय बचता है, वह मैं बच्चों को दे पाता हूं।’

बड़ी कक्षाओं में आसानी

किसी पाठ की कार्ययोजना तैयार करना हमेशा से मेहनत का काम रहा है। इसके लिए अध्यापक सरकारी पाठ्यक्रम से शुरुआत करते हैं। आमतौर पर इसमें किताबों से मदद ली जाती है। उसके बाद स्कूल में उपलब्ध संसाधनों, छात्रों एवं अध्यापक की अपनी क्षमता एवं अनुभव के हिसाब से एक्टिविटी तैयार की जाती है। इस सबके बाद सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन वीडियो की भरमार के बीच बढ़ रही नई पीढ़ी का ध्यान उस एक्टिविटी की ओर आकर्षित करना इस चुनौती को और बढ़ा देता है।

इसके अलावा भारत में अध्यापकों को अन्य देशों की तुलना में ज्यादा छात्रों वाली कक्षा का भी सामना करना पड़ता है। यूनेस्को 2020 के आंकड़े के अनुसार, भारत के प्राथमिक स्कूलों में प्रत्येक 33 छात्र पर एक अध्यापक है, जबकि वैश्विक औसत 23 छात्रों पर एक अध्यापक का है। चीन में यह अनुपात 1:16, ब्राजील में 1:20 और उत्तरी अमेरिका में 1:14 है।

बेंगलुरु के शिक्षण फाउंडेशन के मुताबिक, भारत में जैसे-जैसे लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में यहां शहरों में कक्षाओं में छात्रों की संख्या 40 से 80 तक पहुंच सकती है।

सीईओ प्रसन्ना वाडयार ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिला है कि कम आय वाले लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजने के लिए कर्ज तक लेने को तैयार हैं। वाडयार कर्नाटक में पले-बढ़े हैं। वह टेक्सास एएंडएम यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के लिए अमेरिका चले गए थे। बाद में उन्होंने ऑस्टिन में एक सफल सॉफ्टवेयर बिजनेस शुरू किया। 2007 में अवकाश लेकर वह शिक्षण फाउंडेशन का नेतृत्व करने भारत आए थे और अभी यहीं हैं।

A man standing with arms crossed in an office
अपने बेंगलुरु स्थित कार्यालय में शिक्षण फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रसन्ना वाडयार।
फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन

शिक्षण फाउंडेशन का मिशन शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाते हुए सरकारी स्कूलों से दूर होते लोगों को इनके करीब लाना है। वाडयार ने कहा, ‘जब लोग पूछते हैं कि मैं शिक्षण से क्यों जुड़ा, तो मैं कहता हूं, इसे बंद करने के लिए।’

शिक्षण को किफायती एवं प्रभावी पहल के लिए जाना जाता है, जिसे सरकार ने अपनाया है। अब यह फाउंडेशन भारत के छह राज्यों में 50,000 स्कूलों को कवर कर रहा है और 30 लाख छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

उदाहरण के तौर पर, इसका प्रेरणा प्रोजेक्ट छात्रों को आगे आने का मौका देता है। यह प्रोजेक्ट नियमित उपस्थिति से लेकर पढ़ाई एवं खेल में अच्छे प्रदर्शन जैसी छोटी एवं रोजाना की उपलब्धियों के लिए भी छात्रों को पुरस्कृत करता है। बच्चों को रंग-बिरंगे चमकदार स्टिकर मिलते हैं, जिन्हें वे एकत्र कर सकते हैं और सेफ्टी पिन से अपनी शर्ट पर भी लगा सकते हैं। उन्हें मिली हुई सीख के आधार पर रंग-बिरंगे स्टिकर भी प्रदान किए जाते हैं। इससे बच्चे प्रोत्साहित होते हैं और उनके अभिभावकों को भी पता चलता है कि उनके बच्चे ने क्या उपलब्धि पाई है।

कर्नाटक सरकार ने 2018 में प्रेरणा को अपनाया था और इसे पूरे राज्य में लागू किया था।

कुछ साल पहले वाडयार ने देखा कि कैसे अध्यापकों को पाठ की तैयारी करने के लिए परेशान होना पड़ता है। कई बार वे सही समाधान तलाशने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर हार मान लेते हैं। 2023 की शुरुआत में माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया ने शिक्षा कोपायलट को पेश किया था। उस पल को याद करते हुए वाडयार रोमांचित हो जाते हैं।

सभी के लिए जनरेटिव एआई

माइक्रोसॉफ्ट के रूप में शिक्षण को टेक सॉल्यूशन के साथ एक ऐसा साथी मिल गया, जिसकी उसे तलाश थी। वहीं, शिक्षण में माइक्रोसॉफ्ट को स्कूलों में अपने सॉल्यूशन को टेस्ट करने का मौका दिखा। इसमें बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता की संभावना भी थी, भारत से बाहर भी।

वाडयार कहते हैं, ‘यह एक वैश्विक परेशानी है। अध्यापन की व्यवस्था कक्षाओं में टेक्नोलॉजी से कंधा मिलाने में सक्षम नहीं है और अध्यापक अपनी क्षमता को बढ़ाने में सक्षम नहीं रह गए हैं। बच्चों की चाहत अब कुछ ज्यादा पाने की है।’

अक्षय नांबी और तनुजा गनु माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया में शिक्षा कोपायलट के रिसर्चर हैं और उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम किया है।

Outdoor portrait of a male and female researcher next to each other
बेंगलुरु में शिक्षण फाउंडेशन के कार्यालय के बाहर मुस्कुराते एमएसआर इंडिया के शोधकर्ता अक्षय नांबी और तनुजा गनु।
फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन

गनु कहती हैं, ‘एक साल पहले हम यह देखना चाहते थे कि कैसे बड़ी आबादी के बीच वास्तविक समस्याओं का समाधान तलाशने में जनरेटिव एआई का प्रयोग किया जा सकता है।’ नांबी कहते हैं, ‘शिक्षा कोपायलट हमारे लिए यह समझने का माध्यम है कि यूजर्स इसे कैसे प्रयोग में लाते हैं। साथ ही यह कोपायलट के इस पूरे अनुभव पर लोगों के फीडबैक पाने में मददगार है।’

जनरेटिव एआई टूल्स को लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (एलएलएम) पर तैयार किया जाता है, जो बड़े पैमाने पर डाटा का प्रयोग करके टेक्स्ट, कोड, तस्वीर व अन्य आउटपुट जनरेट करते हैं। हालांकि कई बार नतीजे पूरी तरह सही हों, ऐसा जरूरी नहीं है। हाल के महीनों में शोधकर्ताओं ने किसी क्षेत्र विशेष की जानकारियों को जोड़कर इसके नतीजों को ज्यादा सटीक बनाने के बारे में सोचा। शिक्षा कोपायलट में कर्नाटक राज्य का स्कूली पाठ्यक्रम जोड़ा गया है।

नांबी कहते हैं कि उस निर्धारित नॉलेज बेस में से जानकारी निकालने से गलतियों की गुंजाइश खत्म होती है। इसके बाद उस जानकारी को एलएलएम में लाया जाता है, जो लेसन प्लान तैयार करता है। कोपायलट मल्टीमोडल है यानी इसमें तस्वीर, वीडियो के साथ-साथ टेक्स्ट भी है और यह इंटरनेट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वीडियो को भी ले सकता है। एज्यूर ओपनएआई सर्विस का कंटेंट फिल्टर और इसके बिल्ट-इन प्रॉम्प्ट्स नस्लीय या जातिगत मुद्दों आदि जैसे अनुचित कंटेंट को दूर रखते हैं। नांबी ने कहा कि इसमें अध्यापक ही एक्सपर्ट के रूप में जुड़े होते हैं और बच्चों का शिक्षा कोपायलट से कोई सीधा संबंध नहीं रहता है।

दिसंबर, 2023 के अंत में शिक्षण फाउंडेशन ने शिक्षा कोपायलट को लेकर अध्यापकों के अनुभव पर सर्वेक्षण किया था। इनमें पांच अध्यापक शहरी स्कूलों से और 25 ग्रामीण स्कूलों से थे। इनमें से छह अध्यापक अंग्रेजी में और बाकी कन्नड़ में पढ़ाते हैं।

सर्वेक्षण में शामिल अध्यापकों में ज्यादातर ने कहा कि शिक्षा कोपायलट से पाठ की कार्ययोजना बनाने में उनका एक घंटे तक का समय बचा या कम से कम 5 से 15 मिनट तक का समय तो बचा ही। 90 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें इसके द्वारा बनाए हुए प्लान में कभी-कभार, वह भी बहुत थोड़े ही बदलाव करने की जरूरत पड़ी। हर अध्यापक ने सप्ताह में औसतन तीन से चार प्लान तैयार किए थे।

‘हर कक्षा बन रही है ज्यादा जीवंत’

इस सिस्टम को आजमा रहे अध्यापकों के लिए इससे वाकई बड़ा बदलाव आया है।

बेंगलुरु के नेलामंगला कस्बे में स्थित सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय बासवनाहल्ली अंग्रेजी के ‘एल’ (L) आकार वाले भवन में संचालित होता है। स्कूल नारंगी और हल्के हरे रंग में पुता हुआ है। धूल से भरा स्कूल का मैदान है, जहां पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्र एकत्र होते हैं और खेलते हैं। स्कूल में 13 अध्यापक एवं 438 छात्र हैं और हर कक्षा में औसतन 30 छात्र हैं।

शिक्षा कोपायलट को आजमा रही विज्ञान एवं गणित की अध्यापिका महालक्ष्मी अशोक का कहना है कि इसके प्रयोग से अब उनके पास कक्षा में कुछ अतिरिक्त गतिविधियां कराने का समय बच जाता है।

कर्नाटक की प्रसिद्ध हस्तियों की तस्वीरों से सजी दीवारों वाले टीचर्स मीटिंग रूम में बैठी महालक्ष्मी अपना लैपटॉप ऑन करती हैं और उसमें शिक्षा कोपायट खोलती हैं।

A female teacher at a computer, smiling
शिक्षा कोपायलट से सक्रियता से जुड़ी हैं कर्नाटक के बासवनाहल्ली स्थित सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय की कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका एवं सरकारी अध्यापिका महालक्ष्मी अशोक।
फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन

पहले पेज पर ड्रॉप-डाउन मेन्यू के साथ कई विकल्प मिलते हैं: एजुकेशन बोर्ड, मीडियम (अंग्रेजी या कन्नड़, जिसमें आगे अन्य स्थानीय भाषाएं भी जोड़ी जाएंगी), कक्षा, सेमेस्टर, विषय (अभी अंग्रेजी, गणित, सामाजिक विज्ञान एवं विज्ञान) और टॉपिक।

उन्होंने विज्ञान विषय चुना और टाइप किया ‘सर्कुलेटरी सिस्टम’ और समय 40 मिनट तय किया। तुरंत ही शिक्षा कोपायलट ने लेसन प्लान तैयार कर दिया, जिसमें पीडीएफ, पावरपॉइंट स्लाइड्स या हैंडआउट का विकल्प था। साथ में एक्टिविटीज, वीडियो एवं एसेसमेंट के सुझाव भी थे। हर सब-सेक्शन में तीन इमोजी के माध्यम से यह बताने का विकल्प दिया गया कि कोपायलट ने जो प्लान जनरेट किया है, वह कैसा है।

महालक्ष्मी कहती हैं कि पहले कार्डियोवस्कुलर सिस्टम का पाठ पढ़ाते समय उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर हृदय का एक डायग्राम बनाया था और उसके फंक्शन के बारे में बच्चों को समझाया था। हाल ही में, उन्होंने शिक्षा कोपायलट की ओर से सुझाई गई नई एक्टिविटी को बच्चों के सामने रखने का प्रयास किया। उन्होंने हर बच्चे को अपनी कलाई पर अंगुली रखकर नाड़ी को महसूस करने और एक मिनट में धड़कन गिनने को कहा। उन सभी ने एक-दूसरे से तुलना की और इस बारे में बात भी की कि किसी की धड़कन तेज और किसी की धड़कन थोड़ा धीमी है।

कोपायलट ने एक एक्टिविटी का सुझाव दिया – ब्लड टाइपिंग लैब, जिसे करना संभव नहीं था। लेकिन एक और एक्टिविटी थी – किसी का ब्लड प्रेशर नापना, जो कि संभव है। महालक्ष्मी का कहना है कि वह अगली बार घर से ब्लड प्रेशर नापने वाला प्रेशर कफ लेकर आएंगी और बच्चों को उसका प्रयोग करने के लिए कहेंगी।

महालक्ष्मी कहती हैं, ‘निसंदेह बच्चों को ये प्रयोग अच्छे लगते हैं।’ महालक्ष्मी 20 साल से पढ़ा रही हैं और अभी स्कूल की कार्यवाहक प्रमुख हैं। वह कहती हैं, ‘हर कक्षा जीवंत हो गई है। सीखना अब पहले से आसान हो गया है।’

A female teacher demonstrating a science experiment to students in a classroom
शिक्षा कोपायलट द्वारा सुझाया गया विज्ञान का प्रयोग करके दिखातीं कर्नाटक के बासवनाहल्ली स्थित सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय की कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका एवं सरकारी अध्यापिका महालक्ष्मी अशोक।
फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन

हाल ही में विज्ञान में ‘सेपरेशन ऑफ सब्सटांसेज’ का पाठ पढ़ाते समय वह एक छोटे से बैग में चावल, गेहूं, मिट्टी और पानी लेकर आई थीं, जिससे पाठ को बेहतर तरीके से समझाया जा सके। कक्षा 6 में सभी बच्चे सफेद यूनिफॉर्म में थे और लड़कियों ने बालों की चोटी करके फीता बांधा हुआ था। जैसे ही महालक्ष्मी ने अलग-अलग पदार्थों को पृथक करने के लिए हाथ से बीनने, सूप से फटकने, पानी में नीचे जमने देने और फिल्टर करने की बात कही, सभी ने एक स्वर में उनका साथ दिया।

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने पहले भी इस तरह पढ़ाया है, इस पर उन्होंने कहा, ‘नहीं। अब ऐसा कर पा रही हूं, क्योंकि मेरे पास अब ज्यादा समय बच रहा है।’

पाठ की प्लानिंग से भी आगे की तैयारी

शिक्षण फाउंडेशन की चीफ प्रोग्राम ऑफिसर स्मिता वेंकटेश ने कहा कि अगले चरण के तहत मार्च में इस शैक्षणिक सत्र के अंत तक पायलट को 100 स्कूलों तक पहुंचाने की योजना है। उसके बाद अप्रैल से टीम सबसे अच्छे माने गए लेसन प्लान को क्यूरेट करना शुरू करेगी, जिससे अध्यापकों को हर बार नए प्लान बनाने के बजाय पहले से ही बने हुए प्लान में बदलाव करने का विकल्प भी मिलेगा।

अमेरिका में पढ़ाई और काम करने के बाद 11 साल पहले स्मिता शिक्षण से जुड़ी थीं। वह कहती हैं कि अध्यापकों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को समझने के लिए वह इससे जुड़ी हैं।

A female NGO worker standing in a classroom with students in the background
कर्नाटक के कनकपुरा में वेंकटरायनाडोडी स्थित सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय में शिक्षण फाउंडेशन की चीफ प्रोग्राम ऑफिसर स्मिता वेंकटेश।
फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन

वह कहती हैं, ‘एक अवधारणा है कि सरकारी स्कूल अच्छे नहीं होते हैं। लेकिन हम मानते हैं कि वहां अध्यापकों को पढ़ाने के अलावा भी बहुत कुछ करना होता है। उन्हें सिर्फ यह सुनिश्चित नहीं करना है कि बच्चे पढ़ाई करें, उन्हें यह भी सुनिश्चित करना है कि सभी बच्चों को यूनिफॉर्म मिल जाए, उन्हें खाना मिल जाए, जनगणना हो जाए आदि। शिक्षा कोपायलट इस भागदौड़ के बीच सीमित समय में उन्हें बेहतर पढ़ाने में मदद कर सकता है।’

स्मिता ने कहा कि संभवत: भविष्य में शिक्षा कोपायलट अन्य कार्यों जैसे क्लास शेड्यूल करने या बच्चों की पढ़ाई को ट्रैक करने आदि में भी मदद कर सकता है। संभवत: यह संघर्ष कर रहे बच्चों के लिए भी सहायक हो सकता है।

वह कहती हैं, ‘निसंदेह एआई रोमांचक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अध्यापकों के लिए मददगार हो सकता है और क्या यह बच्चों की मदद कर सकता है?’

कर्नाटक के कनकपुरा में वेंकटरायनाडोडी स्थित सरकारी उच्चतर प्राथमिक विद्यालय में 7वीं कक्षा में विज्ञान पढ़ाते अध्यापक रविंद्र के. नागैया। फोटो: माइक्रोसॉफ्ट के लिए सेल्वाप्रकाश लक्ष्मणन